Pushpa 2 : The Rule – Review

Pushpa 2 : अल्लू अर्जुन और फहद फ़ासिल के ज़बरदस्त अभिनय के बीच का निचोड़

Pushpa 2, अल्लू अर्जुन और फहद फासिल की परफॉर्मेंस की वजह से एक ब्लॉकबस्टर बन सका था, लेकिन कहानी उम्मीदों के बोझ के नीचे दब गई है। डोनो एक्टर्स ने अपने रोल्स में जान डाल दी, लेकिन ओवरऑल फिल्म ने वो असली मैजिक मिस किया जो पुष्पा: द राइज ने क्रिएट किया था।

Pushpa 2

एक फिल्म को नेशनल सेंसेशन बनाना और उसको बनाने की कोशिश करना बीच में एक बड़ा फर्क होता है। मूल पुष्पा की कहानी ज़मीनी थी, लेकिन सुकुमार ने इस बार “पैन-इंडियन” बनने की कोशिश में ज़्यादा नौटंकी डाले हैं – जैसे एक जापानी बंदरगाह में लड़ाई, दुबई से हेलीकॉप्टर ख़रीदना और बिना किसी तनाव के श्रीलंका की सीमाएँ पार करना। ये सब ग्रैंड लगता है, लेकिन Pushpa 2 कि कहानी का असली मजा कम हो गया है।

Pushpa 2 में बड़े एक्शन दृश्य हैं, जोशीले संवाद हैं और सामूहिक अपील वाले क्षण भी हैं, लेकिन जो गहराई और सापेक्षता है पुष्पा के किरदार में थी, वह गायब लगती है। पुष्पा अब एक ब्रांड बन गया है, और ये ट्रांसफॉर्मेशन उसके लेयर्ड कैरेक्टर को वन-डायमेंशनल बना देता है। फहद फासिल का किरदार शेखावत एक होनहार प्रतिद्वंद्वी के रूप में शुरू होता है, लेकिन उनका और पुष्पा का क्लैश पूरी तरह से डिलीवर नहीं करता।

Pushpa 2

श्रीवल्ली और पुष्पा का अजीब समीकरण :

Rashmika Mandana का किरदार श्रीवल्ली, जो एक मजबूत और कामुक महिला के रूप में दिखाया गया है, कभी-कभी ओवरडोन लगता है। उनका हाइपरसेक्सुअलाइजेशन फिल्म के नारीवादी स्वर को पतला करता है। रश्मिका अपने सीमित क्षणों में अच्छा प्रदर्शन करती हैं, लेकिन उनका किरदार गहराई मिस करता है।

Pushpa 2, फिल्म की लंबाई, जो 200 मिनट से ज्यादा है, एक और बड़ी समस्या है। पुरी फिल्म में अनावश्यक फिलर्स से भरपूर है, जो गति को धीमा करते हैं। हां, कुछ पल जैसे इंटरवल ब्लॉक, पुलिस का चंदन पीछा और पुष्पा और शेखावत के मूक इशारे ज़बरदस्त हैं, लेकिन ये पल बिखरे हुए हैं।

एक भावनात्मक आकर्षण है जब पुष्पा अपने परिवार के साथ असुरक्षित दिखती हैं – अपनी मां और घर की महिलाओं के बीच एक ईमानदार और भावनात्मक क्षण साझा करते हैं। देवी काली का एक दृश्यात्मक आश्चर्यजनक अनुक्रम भी है जो काफी प्रभाव डालता है।

Pushpa 2 : बेहतरीन अदाकारी का प्रदर्शन और तकनीकी ताकत :

अल्लू अर्जुन और फहद फासिल की परफॉर्मेंस वाली फिल्म का सबसे बड़ा दम है। देवी श्री प्रसाद का बैकग्राउंड स्कोर और चंद्रबोस के गीत फिल्म को एक अलग स्तर पर ले जाते हैं। मिरोस्लाव कुबा ब्रोज़ेक की सिनेमैटोग्राफी और सुकुमार का विस्तृत विश्व-निर्माण भी असाधारण बिंदु हैं। लेकिन सुकुमार की “पैन-इंडियन” महत्वाकांक्षी फिल्म की कहानी कमजोर बनती है, और एक अधूरापन महसूस होता है क्योंकि एक और सीक्वल की घोषणा कर दी गई है।

संक्षिप्त मे इतना कह सकते है

Pushpa 2 देखने में भव्य है, लेकिन भावनात्मक जुड़ाव और कथात्मक गहराई वह नहीं है जो पुष्पा: द राइज में थी। शॉर्ट में बोले तो: “सर्वम पुष्प मय्यम।”

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